Wednesday, June 3, 2009

रोना छोड़ दिया है


रज्जू रोया नहीं
आज वह बदल गया है
अब तक तो रोता ही रहा
बिखरने की हालत छोड़
आज वह संभल गया है
किसी गीत में
बंगला न्यारा बन जाता है
वास्तव में
कुनबे भी बिखरे हैं.
भावुकता का रूदन
ज्ञान से सचेत हो जाता है.
चाहतों की भी सीमाएँ
अब बन गई है जो
धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी
पर
परिस्थितियों का नियंत्रण
घटता जा रहा है.
रज्जू नियंत्रण की क्षमताओं से
जूझ रहा है
रोना छोड़ दिया है!

4 comments:

Asha Joglekar said...

रज्जू नियंत्रण की क्षमताओं से
जूझ रहा है
रोना छोड़ दिया है!
आज के यथार्थ का सही चित्रण ।

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुन्दर रचना।

निर्मला कपिला said...

अखिर रज्जू के आँसू भी कब तक साथ देते सुन्दर अभिव्यक्ति है

वीनस केसरी said...

सुन्दर कविता भावः पूर्ण प्रस्तुती
वीनस केसरी