Monday, June 22, 2009

अब भी मन करता है





















तुम्हारा हाथ थामकर चलने को

अब भी मन करता है

कनखियों से झांककर

तुम्हारी मुस्कान चुरा लेने को

अब भी मन करता है

मन करता है अब भी कि

एक छतरी में भीगने से बचने की

नाकाम कोशिश करते रहें

एक दूसरे से सटे हुए

किसी पेड़ के नीचे खड़े रहें

न जाने किन किन बातों पर

चर्चा करते थे साथ रहने को

उस बतरस में डूबने का

अब भी मन करता है

मन करता है अब भी

तुम्हारी लिखी प्रेम कविताएँ

बार बार पढ़ते रहने का।

4 comments:

शोभा said...

भावभीनी अभिव्यक्ति।

डॉ .अनुराग said...

ईमानदार अभिव्यक्ति !!

ओम आर्य said...

एक बेबाक अभिव्यक्ति ..............जिसमे प्रेम सौन्दर्य है.........अतिसुन्दर

Udan Tashtari said...

बहुत भावपूर्ण!