Wednesday, February 17, 2010

चुगलख़ोर सुर्ख गुलाब








चुगलख़ोर सुर्ख गुलाब

खोल गया मेरे सीने में दफ़्न राज़

यूं तो आंखों से छलकता था

तुमने देखा नहीं

होंठों पर थिरकता था

तुमने सुना नहीं

रोम रोम में उछलता था

तुमने छुआ नहीं

और चुगलख़ोर गुलाब ने

सब कह दिया!

Sunday, February 7, 2010

थक गई हूँ रोज-रोज







थक गई हूँ रोज-रोज

पतझड को

बुहारते बुहारते,

गिर जाने दो

जमीं पर

सारे पत्तों को

एक एक कर,

कि

मैं समेट सकूँ

एक साथ सबको।

Tuesday, February 2, 2010

ऐसी आवाज़ दे दो









अगर मैं दिल हूँ तुम्हारा,
तो मुझे ये दिल दे दो.
मैं माफ़ी नहीं चाहती,
बस हाथों में हाथ दे दो.
ज़िन्दगी भर न भूलूँ जो मैं,
वो अहसास दे दो.
बख्श दो मुझको - यूँ पल,
तुम तड़पाओ ना,
सोने से पहले
अपना एक ख्वाब दे दो.
आती-जाती सांसों में
एक शब्द सा सुनती हूँ,
इन धुंधले शब्दों को सुन सकूं मैं,
ऐसी इन्हें आवाज़ दे दो.
अगर कुछ न दे सको तो
फिर इतना करना,
जो कल मिलनी है
वो मौत आज दे दो.
________________चेतना