Friday, July 24, 2009

एक गंभीर सवाल



मैंने भारत के भविष्य को

जलती सड़कों पर नंगे पैरों चलते देखा है.

मैंने भारत के भविष्य को

सड़कों पर, चौराहों पर

भीख मांगते देखा है.

मैंने भारत के भविष्य को

फटे बोरे में कबाड़ बीनते देखा है.

मैंने भारत के भविष्य को

भूख से बिलखते तड़पते देखा है.

मैंने देखा है

एक गंभीर सवाल बनते

भारत के भविष्य को.

Friday, July 17, 2009

राखी सावंत : वरण की स्वतंत्रता : स्वतंत्रता का वरण


लोग देखते हैं

तुम्हारा चेहरा

तुम्हारा बदन

तुम्हारा काम

और अंदाजा लगा लेते हैं

बल्कि यक़ीनन जान लेते हैं

तुम्हारे व्यक्तित्व को,

तुम्हारी तेज चलती ज़बान

पुरूषों को

संस्कृति, सभ्यता, परम्परा जैसी चट्टानों पर

भीम के गदा की गूँज-सी सुनाई पड़ती है।

तुम्हारा थिरकता बदन

जिन्हें टीवी का चैनल बदलने नहीं देता

वह तुम्हारे घर बसाने के सपने को लेकर

मूँह और भौहें सिकोड़ते हैं,

तुम बार-बार कहती हो

अपने संघर्ष की कहानी

लेकिन तुम नहीं जानती

बाज़ार ने सच को स्टंट बना दिया है,

और उसका शिकार ये समाज

नहीं पहचान पाता उस औरत को

जिसने पुरूषों की नोचती निगाहों का जवाब

अपनी धारदार जुबान के रूप में

तैयार कर लिया है।

तुम्हारे संघर्ष में लोगों को

मसाला दिखता है,

तुम्हारे काम को

आइटम का तमगा बना

अपनी संस्कारी बुद्धिमत्ता पर

उछलते हैं,

तुमने सबको

अंगूठा दिखा दिया राखी।

Sunday, July 12, 2009

उनकी आँखें


बाँट लिया करती हैं,

उनकी आँखें.

चुपके से हौले से न जाने क्या

छोड़ दिया करती हैं

उनकी आँखें.

भाँप लिया करती है मेरा ग़म

मेरी उदासी मेरी बौखलाहट,

मन तक टटोल लिया करती है

उनकी आँखें.

उनकी आँखें

जिनमें ज़िंदगी है रंग है

सपने हैं जो संग है,

सच कहूँ

मेरा आईना है

उनकी आँखें.

Monday, July 6, 2009

बेटे जैसा बनाने के लिए








वह जुटती रहती है

दिनभर

बुनती है भविष्य

समेटती है वर्तमान

अपनी दोनों बेटियों को

बेटे जैसा बनाने के लिए.

Thursday, July 2, 2009

ये रातें करे बातें


ये रातें करे बातें

चले आओ

ये हवाएँ दे दुआएँ

चले आओ

ये इंतज़ार करे बेज़ार

चले आओ

ये मौसम करे हमदम

चले आओ!