मैंने भारत के भविष्य को
जलती सड़कों पर नंगे पैरों चलते देखा है.
मैंने भारत के भविष्य को
सड़कों पर, चौराहों पर
भीख मांगते देखा है.
मैंने भारत के भविष्य को
फटे बोरे में कबाड़ बीनते देखा है.
मैंने भारत के भविष्य को
भूख से बिलखते तड़पते देखा है.
मैंने देखा है
एक गंभीर सवाल बनते
भारत के भविष्य को.
5 comments:
देखा तो मैंने भी है
इतना सब कुछ
पर गंभीर सवाल पर
आपका दृष्टिकोण
अच्छा लगा
पर क्या ये सवाल
रहेगा सवाल ही
या मिलेगा इसका
कभी जवाब भी।
जवाब तो है वाचस्पति जी, लेकिन निजी स्वार्थों ने कैद कर रखा है। जाने नहीं देता जवाब की दिशा में।
Bahut khub Aprajita ji, bahut marmik vichar hai. Esse bachne ka upaya to bas yahi hai ki eski suruat hamse aur aap se ho taki ham bharat ke bhabisya ko es tarah se barbad na hone de . Aur aap se kahana chahunga ki aap mere dvara likhe gaye sei mudde pe lekh jarur padhe aur apna margdarashan de. Abhar
मैंने देखा है
एक गंभीर सवाल बनते
भारत के भविष्य को.
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मार्मिक और संवेदनशील सवाल -- जबाब तलाशना ही होगा.
सुन्दर रचना
देश के भविष्य को बनाने वाले इस हालात में हों .. तो आपकी चिंता स्वाभाविक है।
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