Wednesday, December 30, 2009

ठूँठ में बदल गए








कुछ बंद दरवाजे हैं
कुछ रोज़ सुनी जाने वाली आवाज़ें
दीवारें हैं,
और बहुत कुछ है बिखरा हुआ
जिसे रोज़ समेटती हूँ
बस यही तो करती हूँ
अपनी ज़िन्दगियों को “हमारी” बनाने की कोशिश में
जितनी बार मुँह खोलती
बाँहें फैलाती
उतनी बार नासमझ करार दी जाती
उलटबाँसियों से दबा दिया जाता
उछलता कूदता मेरा मन
अनर्थों में जीता हमारा आज
अपने अपने भविष्य की ओर
अकेला ही बढ़ता जा रहा है
मेरे आँसू मेरा दर्द मेरा प्रेम
सिर्फ मेरे बनकर मुझमें ही विलीन होने लगे
जहाँ तक पहुँचकर इनको फलना था
वहाँ पहुँचकर ठूँठ में बदल गए...

Sunday, December 27, 2009

मेरी उम्मीद








दिन उगता है तो उम्मीद करती हूँ

दोपहर होने पर उम्मीद करती हूँ

दिन ढलने पर भी उम्मीद करती हूँ

रात को उसी उम्मीद के साथ

अपने बिस्तर पर

कम्बल में लिपटकर

सो जाते हैं

मैं और मेरी उम्मीद !