Tuesday, November 15, 2011


बाज़ार में बिक रही थी
हत्या करके लायी गई 
मछलियाँ 
ढेर पर ढेर लगी 
मरी मछलियाँ 
धड़ कटा-खून सना 
बदबू फैलाती बाज़ार भर में.

मरी मछलियों पर जुटी भीड़ 
हाथों में उठाकर 
भांपती उनका ताज़ापन
लाश का ताज़ापन.

भीड़ जुटी थी 
मुर्गे की दूकान पर 
बड़े-बड़े लोहे के पिंजरों में 
बंद सफ़ेद-गुलाबी मुर्गे या मुर्गियाँ 
मासूम आँखों से भीड़ को ताकते 
और भीड़ ताकती उनको 
भूखी निगाहों से.

अपनी बाँह के दर्द में 
तड़पड़ाते आदमी ने 
दबाकर बाँह को पकड़ा था इसतरह 
कि कोई छू ना पाए 
दर्द कहीं बढ़ ना जाए 
दुकानदार से कहता 
मेरे लिए ये मुर्गा जल्दी काट दो भाई 
मैं दर्द से खड़ा नहीं हो पा रहा!

क्षण भर में मासूम मुर्गे की देह से 
अलग कर दिए गए 
दो आँख, चोंच और पैर.