Thursday, March 1, 2012

वे दोनों




चार दीवारों के भीतर

वे दोनोँ मौजूद थे 

कभी जिनके मौन में भी थीं 

ढेर सारी बातें !!

जिनकी आँखें भीड़ में भी 

पल भर को टकराकर

रचती थीं आख्यानक !!

जिनके बीच 

संवादों, अभिव्यक्तियों के 

दौर चला करते थे,

कम लगती थी जिन्हें जिंदगी 

अपनी बातों के लिए, 

चार दीवारों के भीतर मौजूद 

वे दोनों अब भी बोलते हैं ,पर 

अब होती हैं बहसें ,

विलुप्त होती जिंदगी पर,,,

काम और पैसे के बीच,

कभी कभी वे रिश्तेदारी निभाने की सामाजिकता पर भी 

करते हैं बहस .

ताला लगा कर जाते वक्त 

जिस घर को वे बंद कर जाते हैं ,

उसे ताला खोलकर भी,

खोलते नहीं !!!!!