Sunday, February 7, 2010

थक गई हूँ रोज-रोज







थक गई हूँ रोज-रोज

पतझड को

बुहारते बुहारते,

गिर जाने दो

जमीं पर

सारे पत्तों को

एक एक कर,

कि

मैं समेट सकूँ

एक साथ सबको।

6 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

:) बहुत सुंदर भाव हैं.

Unknown said...

बसन्त के बाद पतझड का आना सत्य है
उम्र ढलने पर थकना भी सत्य है

निर्मला कपिला said...

थक गयी हूँ????? नाम अपराजिता और थक गयी। ये सही नही । हाँ अगर रचना की बात करें तो बहुत अच्छी है शुभकामनायें

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जज्बातों को खूबसूरती से उकेरा है...बहुत खूब

श्यामल सुमन said...

अपराजिता - और थक गई हूँ - ये बात कुछ हजम नहीं हुई - हा - हा- हा-

सुन्दर भाव की रचना।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

संजय भास्‍कर said...

हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।