तुम्हारा हाथ थामकर चलने को
अब भी मन करता है
कनखियों से झांककर
तुम्हारी मुस्कान चुरा लेने को
अब भी मन करता है
मन करता है अब भी कि
एक छतरी में भीगने से बचने की
नाकाम कोशिश करते रहें
एक दूसरे से सटे हुए
किसी पेड़ के नीचे खड़े रहें
न जाने किन किन बातों पर
चर्चा करते थे साथ रहने को
उस बतरस में डूबने का
अब भी मन करता है
मन करता है अब भी
तुम्हारी लिखी प्रेम कविताएँ
बार बार पढ़ते रहने का।
4 comments:
भावभीनी अभिव्यक्ति।
ईमानदार अभिव्यक्ति !!
एक बेबाक अभिव्यक्ति ..............जिसमे प्रेम सौन्दर्य है.........अतिसुन्दर
बहुत भावपूर्ण!
Post a Comment