Friday, June 5, 2009

स्वप्न बुनती रही आँखें







स्वप्न बुनती रही आँखें

उम्मीदें उम्रदराज़ होती गई।

मंज़िल कभी पास कभी दूर

मुझे दिखती, मिलती, लड़ती, झगड़ती रही।

6 comments:

Anonymous said...

स्वप्न बुनती आँखो को स्वप्न बुनने दो ---
बहुत अच्छा लिखा है आपने
बधाई

श्यामल सुमन said...

स्वप्न को लगातार बुनते रहें क्योंकि सपना है तो जीवन का मतलब है।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

ओम आर्य said...

achchhi rachana ......sapane jiwan se hai ,ya jiwan se sapana

महुवा said...

chashmebadoor..........!!

महुवा said...

chashmebadoor..........!!

Anonymous said...

Wah Wah manjeelen dikhi, Mili or fir ladi, jhagdi.
Umeeden umardaraj bahut sunder hai apka andaje bayan.
bhagwan appke fan ko or umda kare God bless u.