रज्जू रोया नहीं
आज वह बदल गया है
अब तक तो रोता ही रहा
बिखरने की हालत छोड़
आज वह संभल गया है
किसी गीत में
बंगला न्यारा बन जाता है
वास्तव में
कुनबे भी बिखरे हैं.
भावुकता का रूदन
ज्ञान से सचेत हो जाता है.
चाहतों की भी सीमाएँ
अब बन गई है जो
धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी
पर
परिस्थितियों का नियंत्रण
घटता जा रहा है.
रज्जू नियंत्रण की क्षमताओं से
जूझ रहा है
रोना छोड़ दिया है!
4 comments:
रज्जू नियंत्रण की क्षमताओं से
जूझ रहा है
रोना छोड़ दिया है!
आज के यथार्थ का सही चित्रण ।
सुन्दर रचना।
अखिर रज्जू के आँसू भी कब तक साथ देते सुन्दर अभिव्यक्ति है
सुन्दर कविता भावः पूर्ण प्रस्तुती
वीनस केसरी
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