Sunday, June 14, 2009

मैं चुरा लेना चाहती हूँ


















ज्यों चुरा लेता है

गर्मी का मौसम

बादलों से थोड़ी बारिश

सर्दी का मौसम

गुनगुनी धूप की तपिश

मैं चुरा लेना चाहती हूँ

वक्त

तुमसे मिलने का…

12 comments:

ओम आर्य said...

वाह.... वाह.... वाह...... वाह.....

sanjay vyas said...

सुंदर भावाभिव्यक्ति.पंक्तियाँ सीधे भीतर उतरती हैं अपने पीछे सुखद अहसास छोड़कर.

अजय कुमार झा said...

प्रिय अपराजिता जी,
आज पहली बार ही आपके ब्लॉग पर आया हूँ..थोड़ी देर में ही पता चल गया की आप चंद उन लोगों में से हैं जो तूलिका और कलम दोनों के जादूगर हैं...आगे भी आपके ब्लॉग पर आता रहूंगा...

M Verma said...

जादूगरी शब्दो के अम्बार मे नही है बल्कि भाव के भंडार मे है.
बखूबी निभाया है आपने

श्यामल सुमन said...

वाह। वक्त चुराने की शानदार कोशिश। बहुत भाव हैं।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!!

राकेश जैन said...

sundar kshanika...
chura lena, sanso ke beech pade antral,

dhadkanon ke beech ka maun,
magar kisi apne ke lie saup dena ...kitna shreshkar hota hai esabhav,

चश्म-ए-बद्दूर said...

आप लोगों के विचारों से चित्त प्रसन्न हो जाता है एवं गति रचनात्मक। सधन्यवाद।

वीनस केसरी said...

एक तो चोरी ऊपर से इतनी प्यारी सीना जोरी
बहुत खूब :)
वीनस केसरी

अनिल कान्त said...

waah !!

एक स्वतन्त्र नागरिक said...

क्या बात है!
मौसम के मिजाज़ को अपने भावों की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर क्या खूब कल्पना की है.
ऐसे मौसम के अंदाज़ में चुराए हुए वक़्त में कितना अपनापन कितनी कशिश होगी.
काश कि ऐसा हो................

Anonymous said...

jiska naam aparajita ho wo churaye jo koi cheej bhale hi wah waqt hi kyun na ho jayaj nahi hai
rpratap2002@rediffmail.com