Sunday, June 7, 2009

नौकरी



ज़िन्दगी के मायने में
इस तरह घुस गई है
कि इसके होने से मेरा होना तय है
नहीं तो सब बेबात है!
ये करती है तय
कि तुम्हें कितना आदर मिलना चाहिए
मेरे सम्मान का सूचक है
नौकरी!

न तो मेरी जेब भारी है
न ही मेरी ज़बान जानती है
कैसे करते हैं चापलूसी,
फिर कैसे मिलेगी नौकरी!
जबकि मेरी औकात है
मामूली-सी!

6 comments:

*LillaVi* said...

Hello ;)

Unknown said...

ek baat kahoon?
aap chitrakaar bhi behtareen ho,adhyapika bhi achhi hi hongi, lekin kavyitri___________
OH MY GOD ! maar dala..............
itne saral shabdon me itni umda kavita karna sab k bas me nahin hota ...........maa sharda ne aapko ye kala bharpoor dee hai...badhaiyan___
WISH YOU ALL THE BEST & ENJOY YOUR TAILENT !

विजय तिवारी " किसलय " said...

अपराजिता जी
"नौकरी" रचना में
आपने नौकरी और औकात का जो मेल बैठाया है.
वर्तमान की ये सोच वाजिब है.
- विजय
http://hindisahityasangam.blogspot.com/

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

samvedansheel rachana

M Verma said...

बहुत गहराई है

रवीन्द्र दास said...

achchha hai. kavita achchhi hai.