Thursday, October 7, 2010

माँ और मैं


माँ से पहले मैं

न तत्व थी

न अस्तित्व था

न जान थी

न जीवन था

माँ ने दिया सब कुछ मुझे

हे माँ अपर्ण हर पल तुम्हें

जीवन में आने से पहले

माँ ने मुझे अपना गर्भ दिया

जीवन में आने पर मुझे

अपने तन से भोजन दिया

जीवन का हर एक पल

आपके कर्ज में डूबा हुआ

जीवन का हर पल आपके

प्यार से सींचा हुआ

महिमा कभी न जान सकूँ

शायद आपके रूप की

भूख मेरी बढ़ रही प्रत्येक पल

आपके साथ व स्नेह की !!!



-------------रचनाकार : चेतना शर्मा


8 comments:

vandana gupta said...

बेहद ह्रदयस्पर्शी रचना लिखी है……………माँ पर बहुत ही सुन्दर भाव संजोये हैं।

संजय भास्‍कर said...

ह्रदयस्पर्शी रचना ...भावपूर्ण रचना के लिये बधाई !

अनामिका की सदायें ...... said...

आप की रचना 08 अक्टूबर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
http://charchamanch.blogspot.com/2010/10/300.html



आभार

अनामिका

डॉ. मोनिका शर्मा said...

माँ से जुड़ा हर ख्याल हर बात बेहद अच्छी लगती है.... आपकी रचना बहुत ही प्यारी और मन को छूने वाली है......

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चेतना शर्मा जी की सुन्दर और संवेदनशील रचना पढवाने के लिए आभार

mridula pradhan said...

bahut achchi.

khud ko pahachano said...

adbhut sunder rachna apni ma ke liye to hum bhi aisa nahi likh paye congratulations

रवीन्द्र दास said...

अनामिका जी, कविता लिखो मत, रचो और उतनी ही तन्मयता से जितनी तन्मयता से हम सड़क पार करते हैं.