Sunday, August 2, 2009

पिता की रिटायरमेंट पर












ठहर जाने के लिए आपकी ज़िन्दगी में,

मैं, पड़ाव आ ही गया.

गुज़रा वक्त नहीं जो आ न सकूँ पर

मैं, बदलाव आ ही गया.

गवाह हूँ मैं आपकी मेहनत का

संघर्ष का, पर भरे कंधों में

मैं, झुकाव आ ही गया.

अभी नहीं हुए हैं आप ज़िम्मेदारियों से निवृत पर

देखा न,

मैं, सुझाव आ ही गया.

हम सभी देंगे आपका साथ हर पग पर

अब इस डाली में, कुछ मुड़ाव आ ही गया.

____________________ गंगा

5 comments:

जितेन्द़ भगत said...

स्‍नेहल कवि‍ता।

M VERMA said...

भावपरक --
अनुभूति की कविता
बहुत सुन्दर

Smart Indian said...

बहुत अच्छे!

36solutions said...

सुन्‍दर कविता. शव्‍दों में बयां होती अभिव्‍यक्ति.

आभार.

निर्मला कपिला said...

भावमय अभिव्यक्ति बेहतरीन आभार्