ठहर जाने के लिए आपकी ज़िन्दगी में,
मैं, पड़ाव आ ही गया.
गुज़रा वक्त नहीं जो आ न सकूँ पर
मैं, बदलाव आ ही गया.
गवाह हूँ मैं आपकी मेहनत का
संघर्ष का, पर भरे कंधों में
मैं, झुकाव आ ही गया.
अभी नहीं हुए हैं आप ज़िम्मेदारियों से निवृत पर
देखा न,
मैं, सुझाव आ ही गया.
हम सभी देंगे आपका साथ हर पग पर
अब इस डाली में, कुछ मुड़ाव आ ही गया.
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गंगा
5 comments:
स्नेहल कविता।
भावपरक --
अनुभूति की कविता
बहुत सुन्दर
बहुत अच्छे!
सुन्दर कविता. शव्दों में बयां होती अभिव्यक्ति.
आभार.
भावमय अभिव्यक्ति बेहतरीन आभार्
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