दिमाग के सवाल को
बाँध पाना, संयत बनाना
बड़ा कठिन काम है दोस्त,
तुम कितनी सरलता से कहते हो
आज कल कुछ लिखो विखो
और कुछ नहीं तो
कविता ही कर डालो,
शायद तुम नहीं जानते दोस्त
यूँ कागज़ कलम उठाकर
बुन देने से मकड़जाल
कविता नहीं रची जाती,
कविता उगती है
भावों के स्पंदन से
विचारों की दरारों में,
तोड़ती है मन की कुंठाएँ
खोलती है खिड़कियाँ
छनकर पहुँचती है जहाँ से
धूप और हवा
कविता रचती है इतिहास
बुनती है भविष्य
उठाती है प्रश्न
जगाती है वर्तमान
ताकि हम सोने न पाएँ
ताकि हम रोते न रह जाएँ!
4 comments:
बहुत ही बढ़िया रचना बधाई .
सही लिखा.....बहुत बढिया रचना है।बधाई।
सहमत हूँ आपके विचारों से.. पर आखिरी पंक्ति ताकि हम रोते ना रह जाएँ से कविता का अंत करना उतना प्रभावी नहीं लगा।
कविता के भाव में बहकर अच्छा संवाद निकाला है ...
बहुत अच्छे।
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