मुझे याद है
तुमने कहा था
मेरे प्रश्न के उत्तर में :-
“तुम मेरे जीवन के
प्रत्येक विचार में
प्रत्येक खाली स्थान में
अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवा चुकी हो।
मैं पानी का बिल जमा करवाने
चाहे कितनी भी लम्बी लाइन में खड़ा रहूँ
मुझे लगता है
वहाँ केवल हम-तुम हैं
एक-दूसरे से , एक-दूसरे को साझा करते,
मुझे लगता है लोगों की जाने
किस बात की जल्दबाजी है कि
वे परेशान हैं, हैरान हैं
किसी भी तरह लाइन में अपना स्थान
खोना नहीं चाहते
या तो पहुँच जाना चाहते हैं
सबसे आगे।
जबकि मैं खुश होता हूँ
सबसे पीछे खड़ा रहकर भी।।“
5 comments:
बेहतरीन रचना
"चाहे कितनी भी लम्बी लाइन में खड़ा रहूँ
मुझे लगता है
वहाँ केवल हम-तुम हैं"
एहसास की सुन्दर रचना
सुन्दर रचना!!
चाहे कितनी भी लम्बी लाइन में खड़ा रहूँ
मुझे लगता हैवहाँ केवल हम-तुम हैं"
एहसास की सुन्दररउर सटीक रचना के लिये बधाई
बहुत ही प्यारा एहसास लिये हुये यह कविता .......जहा इंसान प्यार मे डुब जाता है तो यही लगता है हर पल ........इसको जिस अन्दाज से आपने ब्यान करी ......बिल्कुल दिल मे गहरे उतरती है ....
Man se nikli rachna, seedhe man tak pahunchti hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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