Thursday, August 6, 2009

मुझे याद है


मुझे याद है

तुमने कहा था

मेरे प्रश्न के उत्तर में :-

“तुम मेरे जीवन के

प्रत्येक विचार में

प्रत्येक खाली स्थान में

अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवा चुकी हो।

मैं पानी का बिल जमा करवाने

चाहे कितनी भी लम्बी लाइन में खड़ा रहूँ

मुझे लगता है

वहाँ केवल हम-तुम हैं

एक-दूसरे से , एक-दूसरे को साझा करते,

मुझे लगता है लोगों की जाने

किस बात की जल्दबाजी है कि

वे परेशान हैं, हैरान हैं

किसी भी तरह लाइन में अपना स्थान

खोना नहीं चाहते

या तो पहुँच जाना चाहते हैं

सबसे आगे।

जबकि मैं खुश होता हूँ

सबसे पीछे खड़ा रहकर भी।।“

5 comments:

M VERMA said...

बेहतरीन रचना
"चाहे कितनी भी लम्बी लाइन में खड़ा रहूँ
मुझे लगता है
वहाँ केवल हम-तुम हैं"
एहसास की सुन्दर रचना

Udan Tashtari said...

सुन्दर रचना!!

निर्मला कपिला said...

चाहे कितनी भी लम्बी लाइन में खड़ा रहूँ
मुझे लगता हैवहाँ केवल हम-तुम हैं"
एहसास की सुन्दररउर सटीक रचना के लिये बधाई

ओम आर्य said...

बहुत ही प्यारा एहसास लिये हुये यह कविता .......जहा इंसान प्यार मे डुब जाता है तो यही लगता है हर पल ........इसको जिस अन्दाज से आपने ब्यान करी ......बिल्कुल दिल मे गहरे उतरती है ....

Science Bloggers Association said...

Man se nikli rachna, seedhe man tak pahunchti hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }