Tuesday, May 12, 2009

चित्रकथा





भूले हुए लम्हों का पता याद आया


मेरी मां बहुत भोली
बचपन के दिन, दोस्तों की होली
वो गांव मेरा घर
छोटे छोटे खेल बचपन का सफर


छोटा सा कंधा वो बड़ा सा बस्ता
कभी हुई हार, पर याद है जब मैं जीता


गांव से दिल्ली शहर में आए
बढ़ते ही गए कोई रोक न पाए


घोषित हुआ जब नेट का परिणाम
जे आर एफ निकला तब किया आराम


जन्म के बाद रहे सभी लम्हे याद
भूल गए एक दिन
आप अपना ही जन्म दिन...

3 comments:

जितेन्द़ भगत said...

सही चित्रांकन:)

Udan Tashtari said...

अच्छा प्रयास..नयापन है.

डॉ .अनुराग said...

दिलचस्प !