Thursday, May 14, 2009

कशमकश


ये बिल्कुल जरूरी नहीं
आप मेरी सारी इल्तज़ा
मान जायें
पर ये बहुत जरूरी है
आप मेरी हर इल्तज़ा पर
ग़ौर फ़रमायें
ये बिल्कुल ज़रूरी नहीं
मेरी हर बात सुनी जायें
मानी जायें
पर ये बहुत ज़रूरी है
आप जब आयें
लौटकर जल्दी आयें.
ये बिल्कुल ज़रूरी नहीं
आप मेरे साथ अपना कदम बढ़ायें
साथ आयें
पर ये बहुत जरूरी है
आप जहां भी जायें
मुझे अपने साथ ले जायें.
ये बिल्कुल जरूरी नहीं
आपके मन में क्या है
ये आप बतायें
पर ये बहुत जरूरी है
आप जो भी कहना चाहें
न छिपायें.

2 comments:

विजय तिवारी " किसलय " said...

अपराजिता जी

अभिवंदन
आपने तो बिलकुल मेरे मन की बात कह दी हो जैसे
एक अनोखी अभिव्यक्ति है आपकी
- विजय

निर्मला कपिला said...

ेअपनी बात कहने का बहुत सुन्दर ढंग है बधाई