Wednesday, July 2, 2008

एक गंभीर सवाल


मैंने भारत के भविष्य को
जलती सड़कों पर नंगे पैरों चलते देखा है.
मैंने भारत के भविष्य को
सड़कों पर, चौराहों पर
भीख मांगते देखा है.
मैंने भारत के भविष्य को
फटे बोरे में कबाड़ बीनते देखा है.
मैंने भारत के भविष्य को
भूख से बिलखते तड़पते देखा है.
मैंने देखा है
एक गंभीर सवाल बनते
भारत के भविष्य को.

3 comments:

सतीश पंचम said...

मैंने भारत के भविष्य को
फटे बोरे में कबाड़ बीनते देखा है.

- काफी गहरी बात है ये, अच्छा लिखा....

Udan Tashtari said...

भारत के भविष्य के दृष्य का एक पहलू यह भी है और काफी भूतकाल से है. दुखद तो खैर है ही.

Rachna Singh said...

excellent