Sunday, August 16, 2009

हम



हम

नींद तो चाहते हैं

लेकिन थकना नहीं

साथ तो चाहते हैं

हाथ देना नहीं

कैसा समय है?

जब हम

सफल होना चाहते हैं

सार्थक नहीं !

6 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

अपराजिता यूं ही नहीं हो
पोल खोलकर रख ही दी न।

ओम आर्य said...

ham ek khubsoorat rachana hai jise padhakar achchha laga

ओम आर्य said...
This comment has been removed by the author.
संजय भास्‍कर said...

maine aapki kavita HUM padhi aapne bahut sunder likhi hai

M VERMA said...

सच है बिना थके नीद कहाँ!!
सार्थकता को समर्पित सार्थक रचना

Manish Kumar said...

sahi kaha..