Tuesday, September 23, 2008

तुम कहाँ?


तुम्हारी ख़ामोशी में
तुम कहाँ?
तुम्हारी बोलियों में
सुर कहाँ?
तुम्हारी तन्हाइयों में
तुम तो हो,
तुम्हारे होने का
मतलब कहाँ?

तुम्हें किसी की सादगी
जँचती तो है
खुद के जीने में यही
हसरत कहाँ?
किसी के हालात सिर्फ़
उसके अपने हैं नहीं
इस हक़ीकत को
तुम समझे कहाँ?

तेरी नासमझी के लिए
मैं भी ज़िम्मेदार हूँ
दो पल के लिए ही सही
तुमसे कहते हैं कहाँ?.

5 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

तुम्हारी ख़ामोशी में
तुम कहाँ?
तुम्हारी बोलियों में
सुर कहाँ?
तुम्हारी तन्हाइयों में
तुम तो हो,
तुम्हारे होने का
मतलब कहाँ?

बहुत ख़ूब...अच्छी रचना है...

जितेन्द़ भगत said...

सुंदर

seema gupta said...

तेरी नासमझी के लिए
मैं भी ज़िम्मेदार हूँ
दो पल के लिए ही सही
तुमसे कहते हैं कहाँ?.
"wah beautiful"

Regards

MANVINDER BHIMBER said...

तुम्हारी ख़ामोशी में
तुम कहाँ?
तुम्हारी बोलियों में
सुर कहाँ?
तुम्हारी तन्हाइयों में
तुम तो हो,
तुम्हारे होने का
मतलब कहाँ?
bahut sunder

Udan Tashtari said...

वाह! बहुत खूब!!