Tuesday, September 9, 2008

चाँद और सूरज


बचपन से
आसमान में टहलते चाँद ने
उस हर वक्त में दिया है मेरा साथ
जब कोई भी नहीं होता था पास.
उन बहुत लम्बी काली रातों को
मैंने हर बार गुज़ारा है चाँद के साथ
जिनमें सपनों के टूट जाने की टीस थी
और हर बार उसी चाँद ने
मुझे ज़िन्दगी को जीने की उम्मीद दी
शायद उसे अफ़सोस था
न होने का मेरे साथ उजाले में
इसीलिए 'आप' आ गये इस वीराने में
अब मेरे साथ
तारों से झिलमिलाते नए ख्वाब हैं
चाँद ही नहीं अब सूरज भी मेरे साथ है.

9 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

और हर बार उसी चाँद ने
मुझे ज़िन्दगी को जीने की उम्मीद दी
शायद उसे अफ़सोस था
न होने का मेरे साथ उजाले में
इसीलिए 'आप' आ गये इस वीराने में
अब मेरे साथ
तारों से झिलमिलाते नए ख्वाब हैं
चाँद ही नहीं अब सूरज भी मेरे साथ है.

बहुत ख़ूब...

Advocate Rashmi saurana said...

vah bhut badhiya rachna. badhai ho.

संगीता पुरी said...

आप तो लक्की हैं चांद के साथ साथ सूरज और तारे भी आपके साथ हैं । तभी तो इतनी सुंदर रचना कर पाते हैं।

MANVINDER BHIMBER said...

बहुत अच्छा लिखा है . भाव भी बहुत सुंदर है. पर्याप्त जानकारी भी है. जारी रखें

जितेन्द़ भगत said...

बेहतरीन लि‍खा है आपने।

डॉ .अनुराग said...

बढ़िया है......

mamta said...

रचना और भाव दोनों बहुत सुंदर ।

Anonymous said...

चाँद ही नहीं अब सूरज भी मेरे साथ है...

खुब..

वीनस केसरी said...

तारों से झिलमिलाते नए ख्वाब हैं
चाँद ही नहीं अब सूरज भी मेरे साथ है.


पढ़ कर अच्छा लगा
आपने जो कहना चाहा वो स्पष्ट है


-----------------------------------
यदि कोई भी ग़ज़ल लेखन विधि को सीखना चाहता है तो यहाँ जाए
www.subeerin.blogspot.com

वीनस केसरी