Friday, August 22, 2008

बहुत जी है


आज तुमसे बातें करने का
बहुत जी है
आज तुम्हारे साथ होने का
बहुत जी है
तुमने उस दिन माँगा था हाथ
चाहा था साथ
चलने को उस राह पर.
जब रोशनाइयों में सिमट रहे थे
घुल रहे थे ख्वाब
जला दूँ दिया चाहा था तुमने
मगर मैं अपने ‘मैं’ से
‘तुम’ तक नहीं पहुँच पाई
आज जब देखा कि अब भी
तुम ‘तुम’ हो उसी तरह से
जैसे थे साथ की चाह में
तो उतर आई हूँ
‘मैं’ और ‘तुम’ से
हम हो जाने के लिए
तुम से वह प्रेम पाने के लिए
जिसे तुमने मेरा अधिकार
सम्मान बनाए रखा
तब भी जब मैं नहीं थी
उसी तरह जब मैं थी
आज तुम्हारे साथ ज़िन्दगी जी लेने का
बहुत जी है!
बहुत जी है!!

5 comments:

कामोद Kaamod said...

‘मैं’ और ‘तुम’ से
हम हो जाने के लिए
तुम से वह प्रेम पाने के लिए
जिसे तुमने मेरा अधिकार
सम्मान बनाए रखा

vaah..
shabdo ko kya khobsoorat aakar diya hai..

डॉ .अनुराग said...

आज तुमसे बातें करने का
बहुत जी है
आज तुम्हारे साथ होने का
बहुत जी है
तुमने उस दिन माँगा था हाथ
चाहा था साथ
चलने को उस राह पर.
जब रोशनाइयों में सिमट रहे थे
घुल रहे थे ख्वाब
जला दूँ दिया चाहा था तुमने
मगर मैं अपने ‘मैं’ से
‘तुम’ तक नहीं पहुँच पाई

lagta hai ye shabd hi sari kavita ka saar kah gaye ......

Nitish Raj said...

kuch shabd hi kafi hote hain kavita samajhne ke liye...achiee kavita.

Udan Tashtari said...

बेहद खूबसूरत...

जितेन्द़ भगत said...

nice poem