आज तुमसे बातें करने का
बहुत जी है
आज तुम्हारे साथ होने का
बहुत जी है
तुमने उस दिन माँगा था हाथ
चाहा था साथ
चलने को उस राह पर.
जब रोशनाइयों में सिमट रहे थे
घुल रहे थे ख्वाब
जला दूँ दिया चाहा था तुमने
मगर मैं अपने ‘मैं’ से
‘तुम’ तक नहीं पहुँच पाई
आज जब देखा कि अब भी
तुम ‘तुम’ हो उसी तरह से
जैसे थे साथ की चाह में
तो उतर आई हूँ
‘मैं’ और ‘तुम’ से
हम हो जाने के लिए
तुम से वह प्रेम पाने के लिए
जिसे तुमने मेरा अधिकार
सम्मान बनाए रखा
तब भी जब मैं नहीं थी
उसी तरह जब मैं थी
आज तुम्हारे साथ ज़िन्दगी जी लेने का
बहुत जी है!
बहुत जी है!!
5 comments:
‘मैं’ और ‘तुम’ से
हम हो जाने के लिए
तुम से वह प्रेम पाने के लिए
जिसे तुमने मेरा अधिकार
सम्मान बनाए रखा
vaah..
shabdo ko kya khobsoorat aakar diya hai..
आज तुमसे बातें करने का
बहुत जी है
आज तुम्हारे साथ होने का
बहुत जी है
तुमने उस दिन माँगा था हाथ
चाहा था साथ
चलने को उस राह पर.
जब रोशनाइयों में सिमट रहे थे
घुल रहे थे ख्वाब
जला दूँ दिया चाहा था तुमने
मगर मैं अपने ‘मैं’ से
‘तुम’ तक नहीं पहुँच पाई
lagta hai ye shabd hi sari kavita ka saar kah gaye ......
kuch shabd hi kafi hote hain kavita samajhne ke liye...achiee kavita.
बेहद खूबसूरत...
nice poem
Post a Comment