बाँट लिया करती हैं,
उनकी आँखें.
चुपके से हौले से न जाने क्या
छोड़ दिया करती हैं
उनकी आँखें.
भाँप लिया करती है मेरा ग़म
मेरी उदासी मेरी बौखलाहट,
मन तक टटोल लिया करती है
उनकी आँखें.
उनकी आँखें
जिनमें ज़िंदगी है रंग है
सपने हैं जो संग है,
सच कहूँ
मेरा आईना है
उनकी आँखें.
3 comments:
सुन्दर अभिव्यक्ति हैं।
काश ऐसी आँखे सब को मिलें...
बहुत सुंदर प्रस्तुति...
नीरज
सुंदरतम रचना।
Post a Comment