Wednesday, June 18, 2008

ज़रा सुनिये









ज़रा सुनिये,
कभी कभी
एक लम्हा फुरसत का
एक अपनी हसरत का
एक अदद मुस्कराने का
अदना सा मेरे सपनों में आने का
निकाल लिया कीजिए.
और हाँ,
एक लम्हा बतियाने का
एक अपनी सुनाने का
एक अदद इबादत का
अदना सा मुझे शरारत का
दे दिया कीजिए.

5 comments:

डॉ .अनुराग said...

vakai chasmebaddur....
aaj kal se jyada behtar..

कुश said...

बहुत सुंदर भाव

jasvir saurana said...

sundar rachana ke liye badhai.aap apna word verifiation hata le.taki humko tipni dene mei aasani ho.

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया, लिखते रहें.

cartoonist ABHISHEK said...

achchhi kavita in-dino
padne ko kam hi milti hai..
magar aapko pad kar thodi rahat milti hai...badhai.achchhi kavita ke liye...