शब्दों का एक सेतु
इन भावों के बीच बनना शेष है,
जानती हूँ शब्द नहीं प्रमाण
फिर भी उससे बंधे हैं क्यों प्राण?
तुमने कहा, करो और प्रतीक्षा,
तब तक करती रही मैं
अपने ही हृदय की समीक्षा.
किन्तु तब भी, यही एक खेद है
शब्दों का एक सेतु
इन भावों के बीच बनना शेष है.
चाहते हैं भाव ये,
शब्द का आधार
जिससे न उलझे रह सके
हृदय के उद्गार.
तुम कहो मैं सुनूँ
जीवन का शेष बनूँ.
यही एक स्वप्न है, यही एक सेतु है.
शब्दों का एक सेतु
इन भावों के बीच बनना शेष है.
8 comments:
चित्र सुन्दर हैं और कविता बढ़िया।
शब्दों के बीच भावों का
सेतु बनाती कविता.
बधाई
डा.चंद्रकुमार जैन
बढिया प्रयास है आपका, धन्यवाद । स्वागत है ।
हिन्दी ब्लाग प्रवेशिका
हिन्दी चिट्ठाकारी में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
स्वागत है। नियमित लिखें।
ुम कहो मैं सुनूँ
जीवन का शेष बनूँ.
यही एक स्वप्न है, यही एक सेतु है.
शब्दों का एक सेतु
इन भावों के बीच बनना शेष है.
bahut khoobsurat......ye panktiya bahut achhi lagi.
शब्दो का एक सेतू
इन भावो के बीच बनना शेस है .
वाह..... क्या सुन्दर शब्द पिरोए है .कविता का एक - एक शब्द दिल को छू गया .मेरी ओर से हार्दिक शुभ्कामनाए .
भाव-अभाव में शब्दसेतु-निर्माण की महत्ता और सार्थकता को चिह्नित करती कविता पंक्तियाँ।
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