Sunday, August 8, 2010
आज भी छिपी बैठी है
तुम्हारी कनखियों में कहीं
आज भी छिपी बैठी है
मेरी मुस्कान....
जिसे तुम्हारी आँखों की चमक से,
चुरा लिया था मैंने !!
अब भी तुम्हारे हाथों में रची है
मेरे तन की महक
मेरी नम हथेलियों पर
अब भी महक उठता है,
तुम्हारा चमकीला स्वेद....!!
मेरी उलझी लटें
अब भी यकायक निहारने लगती हैं
तुम्हारी भरी पूरी उंगलियाँ…
मद्धम हवा सी उनकी सरसराहट
अब भी कानों को गुदगुदाती है !!
जब तुम अचानक देखते हो,
अब भी भीड़ में मेरी ओर प्यार से…
उसी तरह ठिठक जाती हूँ
जैसे गई थी ठिठक
तपते जून की भरी दुपहर में…!!
तुम्हारे सीने पर उकेरते हुए चित्र
मैं आज भी भविष्य रचती हूँ
रचने के इसी क्रम में ही तो,
रचा था मैंने आज को !!!
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8 comments:
बहुत ख़ूब !!
जब तुम अचानक देखते हो,
अब भी भीड़ में मेरी ओर प्यार से…
उसी तरह ठिठक जाती हूँ
जैसे गई थी ठिठक
तपते जून की भरी दुपहर में…!!
ultimate! bahut achchha likha hai
Bahut sundar!
बहुत खूबसूरत शब्दों से मन के भावो को पिरो सुंदर कविता का सृजन किया है.
बधाई.
एक ईमानदार प्रयास।
......सफलता आपके चरण चूमे।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
बहुत खूबसूरत ब्लॉग मिल गया, ढूँढने निकले थे। अब तो आते जाते रहेंगे।
हर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
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