Friday, April 23, 2010

कॉलेज की लड़कियाँ




















हरी-हरी घास के दरीचों पर

घने-घने पेड़ों के साये में

बैठी हैं चिड़ियाँ

जिनका कोई एक ठिकाना नहीं

एक जगह से उड़कर यहाँ आई हैं

यहाँ से उड़कर फिर कहीं जाएँगी

हँसी से गूँजते

खुस-फुसाहट और बातों से भरे

कोने-कोने को चिरजीवा कर

अमरता का नया राग गाती

कॉलेज की लड़कियाँ.

7 comments:

Asha Joglekar said...

वाह क्या खूबसूरती से चित्र उतारा है वह भी शब्दों में ।
अपने कॉलेज के दिनों की याद दिला दी ।

M VERMA said...

वाह
बहुत सुन्दर (?)
दोनों चित्र भी और शब्द चित्र भी

M VERMA said...

आपके बनाये इस अल्पना सी
(आपका ही बनाया है ना?)
हरी घास की क्यारी में
कवि की कल्पना सी

कालेज की लड़कियाँ

दिलीप said...

bahut khoob...

rashmi ravija said...

बेहद ख़ूबसूरत अहसास लिए प्यारी सी रचना

संजय भास्‍कर said...

अपने कॉलेज के दिनों की याद दिला दी ।

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।