Thursday, September 3, 2009

स्वार्थी हूँ


स्वार्थी हूँ
यह जानती हूँ!
इसलिए
कि तुम गलत न हो सको
मुझे एक और बार
होना पड़ेगा स्वार्थी.
इसलिए
कि तुम कह सको
तुमने मुझे जाना था सही
मुझे एक और बार
होना पड़ेगा स्वार्थी.
इसलिए
कि फिर तुम्हारी जुबाँ
न गुनहगार हो
न हो सिर लज्जित...
मुझे होना पड़ेगा स्वार्थी!

6 comments:

ओम आर्य said...

गहरे भाव से लबरेज़ कविता .........ढेरो बधाई

Unknown said...

अभिनव
अनुपम
______उत्तम कविता !

अपूर्व said...

इतना ही निर्दोष, निष्कपट होता है वास्तविक प्रेम..उत्कृष्ट रचना के लिये बधाई.

Udan Tashtari said...

बेहतरीन रचना!!

अमित said...

'तुम्हारी चोट दिख रही है मुझे ..
पर क्या करुँ बीच में मेरे स्वार्थों की बाड़ है... '

VIVEK VK JAIN said...

mast likti hai aap....