स्वार्थी हूँ
यह जानती हूँ!
इसलिए
कि तुम गलत न हो सको
मुझे एक और बार
होना पड़ेगा स्वार्थी.
इसलिए
कि तुम कह सको
तुमने मुझे जाना था सही
मुझे एक और बार
होना पड़ेगा स्वार्थी.
इसलिए
कि फिर तुम्हारी जुबाँ
न गुनहगार हो
न हो सिर लज्जित...
मुझे होना पड़ेगा स्वार्थी!
6 comments:
गहरे भाव से लबरेज़ कविता .........ढेरो बधाई
अभिनव
अनुपम
______उत्तम कविता !
इतना ही निर्दोष, निष्कपट होता है वास्तविक प्रेम..उत्कृष्ट रचना के लिये बधाई.
बेहतरीन रचना!!
'तुम्हारी चोट दिख रही है मुझे ..
पर क्या करुँ बीच में मेरे स्वार्थों की बाड़ है... '
mast likti hai aap....
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