Monday, December 22, 2008

तुम्हारी आँखें……

जब ढलता सूरज आख़िरी बार चमकता

मेरी आँखें वहीं थम जाया करती

और तुम्हारी आँखें……

किसी गाने की दो पंक्तियाँ चुराकर

तुम बताने की न बताने वाली कोशिश करते

और हम हँसकर समझ जाते

वही जो हम हर पल के साथ में

अपनी हर बात में

एक दूसरे से कह देने के लिए

वक्त को थामे रहना चाहते थे !

5 comments:

संगीता पुरी said...

अच्‍छा लिखा है।

Vinay said...

बहुत बढ़िया लिखा है

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http://prajapativinay.blogspot.com/

शोभा said...

अच्छा लिखा है।

vijay kumar sappatti said...

bahut hi acchi aur bhaavpoorn kavita .

और हम हँसकर समझ जाते

mujhe ye pankhtiyan bahut pasand aayi hai ..



bahut badhai

kabhi mere blog par aayiyenga pls

vijay
poemsofvijay.blogspot.com

रवीन्द्र दास said...

bahut khushi hui ki dhalta sooraj chamka to sahi. log to dhalte sooraj ko nistej samajhte hai.
achchha hai.