जब ढलता सूरज आख़िरी बार चमकता
मेरी आँखें वहीं थम जाया करती
और तुम्हारी आँखें……
किसी गाने की दो पंक्तियाँ चुराकर
तुम बताने की न बताने वाली कोशिश करते
और हम हँसकर समझ जाते
वही जो हम हर पल के साथ में
अपनी हर बात में
एक दूसरे से कह देने के लिए
वक्त को थामे रहना चाहते थे !
5 comments:
अच्छा लिखा है।
बहुत बढ़िया लिखा है
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http://prajapativinay.blogspot.com/
अच्छा लिखा है।
bahut hi acchi aur bhaavpoorn kavita .
और हम हँसकर समझ जाते
mujhe ye pankhtiyan bahut pasand aayi hai ..
bahut badhai
kabhi mere blog par aayiyenga pls
vijay
poemsofvijay.blogspot.com
bahut khushi hui ki dhalta sooraj chamka to sahi. log to dhalte sooraj ko nistej samajhte hai.
achchha hai.
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