Tuesday, September 2, 2008
जल: जीवन भी, प्रलय भी
आज सुबह पानी नहीं आया
सोसाइटी ने वाटर टैंकर मंगवाया
पानी की बूँद-बूँद को लोग तरह रहे थे लड़ झगड़कर अपनी बाल्टियाँ भर रहे थे
इधर टैंकर पर लिखा था
'जल ही जीवन है'
उधर टेलीविजन पर आ रहा था समाचार
बाढ़ से बिहार हो रहा लाचार
लाखों की तादाद में लोग बेघर हुए
मरने वालों की संख्या को छिपा लिया गया
एक बिजली के तार से लटकती रहीं
तीन ज़िन्दगियाँ चार घंटे तक
ये तो साबित हो गया,
आदमी लड़ सकता है जीवन के लिए
अपनी आख़िरी साँस आख़िरी दम तक
बारिश ने मुम्बई को जब दहलाया था
हर समाचार चैनल ने
मुम्बई के साहस को सलाम बजाया था
बिहार के हालात पर वही चैनल
लाइव-फुटेज दिखा रहे हैं
नई-नई तस्वीरें लाकर टी.आर.पी. बढ़ा रहे हैं
बारह दिन बाद देश के सर्वेसर्वा को
वक्त मिल ही गया जायज़ा लेने का
उन्होंने तोहफे में मुख्यमंत्री को दे दी है
राहत राशि और राहत अनाज.
देशवासियों से अपील कर रहे हैं
सभी समाचार चैनल
“आप बने रहिए हमारे साथ
आप कहीं मत जाइएगा
हम हाज़िर होंगें
कुछ और ताज़ा तस्वीरों
कुछ और बाढ़ ग्रस्तों के साथ”
अब ये बेघर कहाँ जायेंगे?
कहाँ जाकर अपना आशियाना बनायेंगे?
मुम्बई से आसाम तक अहिन्दी भाषियों के लिए
राजनीति का बिगुल बज ही चुका
जम्मू-कश्मीर में भयानक दंगा हुआ
उड़ीसा पर साम्प्रदायिकता की शनिदशा चल रही है
दिल्ली के दिल पर तो यूँ भी बोझ बहुत है
मध्यप्रदेश तो ख़ुद से ही त्रस्त है
दक्षिण भारत की तो हमें ख़बर ही नहीं
पर ये तो तय है राजनीति वहाँ भी कम नहीं
जितना पानी बिहार के गाँवों में पसरा है
उससे कहीं ज्यादा पीड़ितों की आँखों से बरसा है.
आज टैंकर के पीछे लिखा वाक्य
बदलने को जी चाहता है
जल के जीवनदायी होने पर
एक प्रश्न चिह्न लग जाता है.
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