Tuesday, April 27, 2010
खाली कैनवास पर
खाली कैनवास पर पहले
पेंसिल से कुछ बनाती हूँ
ताकि गलती हो तो मिटा सकूँ
जचे न तो हटा सकूँ
फिर संभल संभल कर
तैयार किए रंग भरती हूँ
अब गलती की कोई गुंजाइश नहीं
क्योंकि मैं जानती हूँ
मुझे अलग नहीं
सामान्य के बीच रहना है
Friday, April 23, 2010
कॉलेज की लड़कियाँ
हरी-हरी घास के दरीचों पर
घने-घने पेड़ों के साये में
बैठी हैं चिड़ियाँ
जिनका कोई एक ठिकाना नहीं
एक जगह से उड़कर यहाँ आई हैं
यहाँ से उड़कर फिर कहीं जाएँगी
हँसी से गूँजते
खुस-फुसाहट और बातों से भरे
कोने-कोने को चिरजीवा कर
अमरता का नया राग गाती
कॉलेज की लड़कियाँ.
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