जब ढलता सूरज आख़िरी बार चमकता
मेरी आँखें वहीं थम जाया करती
और तुम्हारी आँखें……
किसी गाने की दो पंक्तियाँ चुराकर
तुम बताने की न बताने वाली कोशिश करते
और हम हँसकर समझ जाते
वही जो हम हर पल के साथ में
अपनी हर बात में
एक दूसरे से कह देने के लिए
वक्त को थामे रहना चाहते थे !
Monday, December 22, 2008
Friday, December 19, 2008
कुछ हाइकू
1.
एक चाहत
जो वक्त से
जूझना चाहती है
हालात से
लड़ना चाहती है
अपनी औक़ात भुलाकर …
2.
तुमने दिए पंख
कहा उड़ो…
दिखाया आकाश
जिसके असीम विस्तार में
उड़ना वाकई सुखद था
पर दिशाहीन कबतक?
3.
ज्यों चुरा लेता है
गर्मी का मौसम
बादलों से थोड़ी बारिश
सर्दी का मौसम
गुनगुनी धूप की तपिश
मैं चुरा लेना चाहती हूँ
वक्त
तुमसे मिलने का…
4.
हम
नींद तो चाहते हैं
लेकिन थकना नहीं
साथ तो चाहते हैं
हाथ देना नहीं
कैसा समय है?
जब हम
सफल होना चाहते हैं
सार्थक नहीं !
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